03 April, 2013

इंतज़ार-ऐ-भगतसिंह





उन्हे शिकायत है अपने कॉलेज से जो की सही वक़्त पर परीक्षा परिणाम तक नहीं दे सकता। दूसरे कॉलेजो के दोस्तो को कंपनियो के ऑफर लेटरो के साथ अक्कड़ बक्कड़ खेलते हुए देख रहा है वो लेकिन खुद एक ऑफर लेटर के लिए रो रहा है। दिन मे कई बार अपने Resume को देख कर उसमे कमिया खोज रहा है। ऐसी क्या कमी है मुझमे और मेरे दूसरे प्लेस्ड दोस्तो मे, सिर्फ कॉलेज का नाम ही तो अलग है। लेकिन उसमे मेरी क्या गलती है, मैंने तो पूरी मेहनत की थी अपने कॉलेज मे, यहा तक की ज्यादा ही की थी। क्या क्या सपने देखे थे, लेकिन यहा तो रिज़ल्ट ही नहीं है अब तक हाथ मे। मन तो उसका करता है की कल की पहली ट्रेन से कॉलेज पहुच कर, रिज़ल्ट लेकर ही वापस लौटे। कम से कम एक ई-मेल तो ऐसा कर दे, जिसमे पूछ ले वो सब, जो मन मे है उसके, या फिर फोन करके ही पूछ ले। लेकिन कभी उसकी हिम्मत नहीं होती। डर लगता है उसे, जब दूसरे चुप है तो मै क्यो बोलू। मै क्यो बनू बलि का बकरा, सबका काम तो हो जाएगा और मै मारा जाऊगा। वो नहीं चाहता की उसके ग्रेड कम हो और सर से रिलेशन खराब हो। कभी कभी मन ही मन मे वो बहुत कुछ प्लान करता है लेकिन सुबह उठकर सोचता है की कुछ दिन बाद करता हूँ, हो सकता है की तब तक सब कुछ ठीक हो जाये। और फिर कुछ दिन बाद वो पुराना प्लान भूल जाता है। वो फिर से नया प्लान बनाता है। अपने दोस्तो के सामने शेर सा दहाड़ता कर अपना गुस्सा शांत करता है और जब बोलने की बारी आती है तो बनावटी मुस्कान के साथ ज्यादा कुछ बोलता नहीं है।

ये उसके साथ पहली बार नहीं हुआ है, पिछली बार रोड मे गढ़ढ़े देखकर भी उसका मन हुआ था की कम से कम शिकायत तो ही कर दे। लेकिन बाद का सोच कर उसने अपने आप को टाल दिया था उस दिन। कई बार सरकारी हॉस्पिटल मे गंदगी देखकर भी, एक बार भी शिकायत नहीं करता है वो क्योकि उसे डर है रिलेशन खराब होने का और उसे तो पहले से पता है की कुछ नहीं होने वाला। कोशिश करके भी क्या फायदा। वो हमेशा फायदा और नुकसान के तराजू मे बैठकर कर खुद को तोलता है। हालाकी सरकारी नौकरी का विज्ञापन देखकर वो एक बार कोशिश जरूर करता है, जबकि उसे पता है की आरक्षण की आग मे उसका आवेदन-पत्र जल जाएगा। लेकिन फिर भी वो सोचता है की एक बार कोशिश करने मे क्या हर्ज़ है।

वो चुपचाप सब कुछ देख रहा है।
उसको इंतज़ार है एक भगतसिंह का,
जो आएगा और नयी शुरुवात करेगा
जो आयेगा और अपना बलिदान देगा,

और
जिसकी चिता की राख़ को दिखाकर,
वो अपना हक़ मागेगा।

क्या आपको भी है इंतज़ार–ए-भगतसिंह...?



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